दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी
वीर जाहर देव नवमी मेला का आयोजन प्रत्येक वर्ष फीना में होता है। इस मेले की अवधि 15 - 20 दिनों तक रहती है। दूर गांव से भी लोग वीर जाहर देव को प्रसाद एवं झंडी चढ़ाने आते हैं।
देशभर में गोगा जाहरवीर करोड़ों अनुयायी हैं। सावन में हरियाली तीज से भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की नवमी तक गोगा जाहरवीर की म्हाढी पर श्रद्धालु आकर निशान चढ़ाकर पूजन-अर्चन करते हैं। गोगा हिंदुओं में जाहरवीर है तो मुस्लिमों में जाहरपीर । दोनों संप्रदाय में इनकी बड़ी मान्यता है।
यह बात कम ही लोग जानते हैं कि राजस्थान में जन्मे गोगा उर्फ जाहरवीर की ननसाल बिजनौर जिले के रेहड़ गांव में है। इनकी मां बाछल जिले में जहां-जहां गईं, वहां-वहां आज मेले लगते हैं। जाहरवीर के नाना का नाम राजा कोरापाल सिंह था। गर्भावस्था में काफी समय बाछल पिता के घर रेहड़ में रहीं। रेहड़ के राजा कुंवरपाल की बेटी बाछल और कांछल का विवाह राजस्थान के चुरु जिले के ददरेजा गांव में राजा जेवर सिंह व उनके भाई राजकुमार नेबर सिंह से हुआ।जाहरवीर के इतिहास के जानकारों के अनुसार, बाछल ने पुत्र प्राप्ति के लिए गुरु गोरखनाथ की लंबे समय तक पूजा की। गोरखनाथ ने उन्हेें झोली से गूगल नामक औषधि दी और कहा कि जिन्हें संतान न होती हो, उन्हें यह खिला देना। रानी बाछल से थोड़ा-थोड़ा गूगल पंडिताइन, बांदी और घोड़ी को देकर बचा काफी भाग खुद खा लिया। औषधि के नाम पर उनकी संतान का नाम गोगा हो गया। वैसे रानी ने बेटे का नाम जाहरवीर रखा। पंडिताइन के बेटे का नाम नरसिंह पांडे और बांदी के बेटे का नाम भज्जू कोतवाल पड़ा। घोड़ी के नीले रंग का बछेड़ा हुआ। गोगा की मौसी के भी गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से दो बच्चे हुए।
ये सब साथ साथ खेलकर बड़े हुए। बाछल ने जाहरवीर को वंश परपंरा के अनुसार शस्त्र कला सिखाई और विद्वान बनाया। जाहरवीर नीले घोड़े पर चढ़कर निकलते और मिल-जुलकर रहते। गुरु गोरखनाथ के ददरेजा आने पर जाहरवीर ने उनकी सेवा की और फिर उनकी जमात में निकल गए। गुरु के साथ वह काबुल, गजनी, इरान, अफगानिस्तान आदि देशों में घूमे। उनके उपदेश हिंदू-मुस्लिम एकता पर आधारित होते थे। भाषा के कारण वे मुस्लिमों में जाहरपीर हो गए। जाहरपीर का नीला घोड़ा और हाथ का निशान उनकी पहचान बन गए।
मां बाछल ने किसी बात पर इन्हें घर न आने की शपथ दी थी, किंतु ये पत्नी से मिलने छिपकर महल आते। श्रावण मास की हरियाली तीज पर मां ने देख लिया और पीछा किया तो ये हनुमानगढ़ के निर्जन स्थान में घोड़े समेत जमीन में समा गए। उस दिन भाद्रपद के कृष्णपक्ष की नवमी थी। तभी से देश के कोने-कोने से आज तक प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु राजस्थान के ददरेवा में स्थित जाहरवीर के महल एवं गोगामेढ़ी नामक स्थान पर उनकी म्हाढ़ी पर प्रसाद चढ़ाकर मन्नतें मांगते हैं। देशभर में जहां जहां जाहरवीर गए। वहां उनकी म्हाढ़ी बन गई।
मान्यता है कि गर्भावस्था में रेहड़ में मां बाछल के रहने के स्थान पर ही जाहरवीर गोगा जी की म्हाढ़ी है। महल नष्ट हो गया है। यहां प्रत्येक वर्ष भाद्रपद की नवमी को हजारों श्रद्धालु प्रसाद चढ़ाकर सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करते हैं। बिजनौर के पास गंज, फीना और गुहावर में भी इस अवधि में मेले लगते हैं। किंवदंति है कि जिस दंपति को संतान सुख नहीं मिलता, जाहरवीर गोगा जी की म्हाढ़ी पर सच्चे मन से प्रार्थना पर मुराद पूरी होती है।